छत्तीसगढ़ (CG News Focus): छत्तीसगढ़ की समाज सुधारक और दलित अधिकारों की हिमायती मिनीमाता ने समाज के सबसे उपेक्षित वर्गों के उत्थान के लिए जीवनभर संघर्ष किया। 1952 में छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद बनने वाली मिनीमाता, अपने समय की अद्वितीय सामाजिक नेता थीं। उनके योगदान के बावजूद, वर्तमान छत्तीसगढ़ में उनके नाम पर न कोई स्कूल है, न कॉलेज, और न ही कोई बड़ा सामाजिक स्मारक, जो इस महान विभूति के योगदान को नई पीढ़ी तक पहुंचा सके। यह सवाल स्वाभाविक है—क्या इस उपेक्षा के पीछे जातिगत राजनीति है?
मिनीमाता का सामाजिक योगदान
मिनीमाता के जीवन का प्रमुख उद्देश्य समाज से असमानता, जातिगत भेदभाव और लैंगिक असमानता को मिटाना था। उन्होंने समाज में सुधार लाने के लिए कई आंदोलनों का नेतृत्व किया, विशेष रूप से दलित और महिलाओं के अधिकारों के लिए। मिनीमाता एक्ट (अस्पृश्यता उन्मूलन अधिनियम) उनकी बड़ी उपलब्धियों में से एक है, जो आज भी भारत में दलित अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक प्रमुख कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
लेकिन इन महत्वपूर्ण उपलब्धियों के बावजूद, उनका नाम और उनके योगदान का प्रचार-प्रसार बहुत कम हुआ है। खासकर छत्तीसगढ़ में, जहां उन्होंने अपने अधिकांश सामाजिक कार्य किए, उनकी विरासत को सम्मानजनक पहचान मिलना बाकी है।
शैक्षणिक और सामाजिक उपेक्षा सवाल खड़ा करती है चुप्पी
जब हम छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्सों में समाज सुधारकों के नाम पर स्कूल, कॉलेज और संस्थानों की बात करते हैं, तो यह खेदजनक है कि मिनीमाता के नाम पर कोई प्रमुख संस्थान नहीं है। यह चौंकाने वाला तथ्य इस दिशा में गंभीर चिंतन की आवश्यकता दर्शाता है—क्या यह उपेक्षा केवल अनजाने में हुई, या इसके पीछे कुछ राजनीतिक और जातिगत कारण भी हैं?
मिनीमाता का दलित समुदाय से आना, और उनका सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ना, शायद छत्तीसगढ़ की राजनीति के कुछ वर्गों के लिए असुविधाजनक हो सकता है। इसलिए, उनके नाम पर संस्थान स्थापित करने या उनके कार्यों को प्रमोट करने की अनदेखी एक संभावित संकेत हो सकता है कि उनके योगदान को जानबूझकर हाशिये पर रखा जा रहा है।
जातिवादी राजनीति का साया एक गहरा सवाल
भारत की राजनीति में जातिगत विभाजन और समीकरणों का महत्व सर्वविदित है। छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं है। यहां कई समाज सुधारक और राजनीतिक नेता हुए हैं, जिनके नाम पर बड़ी-बड़ी योजनाएं और संस्थान चलाए जा रहे हैं। लेकिन मिनीमाता, जिनका योगदान सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में अविस्मरणीय है, उन्हें नजरअंदाज किया जाना इस बात का संकेत हो सकता है कि उनके दलित पृष्ठभूमि ने उनके योगदान को हाशिए पर डाल दिया है।
यह संभव है कि छत्तीसगढ़ की सत्ता और राजनीतिक दलों ने अपनी जातिगत नीतियों और समीकरणों के कारण मिनीमाता को वह सम्मान नहीं दिया, जो उन्हें मिलना चाहिए था। उनके नाम पर शैक्षणिक संस्थानों का न होना, या उनके योगदान की सही से पहचान न होना, केवल एक जातिगत पूर्वाग्रह का परिणाम हो सकता है।
नई पीढ़ी के लिए मिनीमाता की प्रेरणा
मिनीमाता का जीवन केवल सामाजिक न्याय और दलित अधिकारों तक सीमित नहीं था। उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण और समतामूलक समाज के निर्माण के लिए भी काम किया। उनके संघर्ष, विचार और नेतृत्व आज की पीढ़ी के लिए एक मजबूत प्रेरणा बन सकते हैं।
वर्तमान समय में जब देश भर में महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए नई जागरूकता पैदा हो रही है, मिनीमाता का नाम और उनका योगदान उन मूल्यों को और मजबूती से स्थापित कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि राज्य सरकार और समाज के विभिन्न वर्ग मिनीमाता के योगदान को पहचानें और इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए ठोस कदम उठाएं।
मिनीमाता का जीवन हमें यह सिखाता है कि असमानता और सामाजिक भेदभाव से लड़ने के लिए व्यक्तिगत संघर्ष और प्रतिबद्धता की कितनी आवश्यकता है। फिर भी, उनके जीवन और उनके योगदान को जिस तरह से उपेक्षित किया जा रहा है, वह छत्तीसगढ़ की राजनीति और समाज के लिए एक गंभीर प्रश्न खड़ा करता है। क्या छत्तीसगढ़ की सरकारें और राजनीतिक दल इस उपेक्षा को समाप्त करेंगे और मिनीमाता को उनका सही स्थान देंगे?
अगर आज की युवा पीढ़ी को मिनीमाता के विचारों और संघर्षों से जोड़ने की कोशिश की जाए, तो यह समाज में एक नई चेतना पैदा कर सकता है। यह राज्य सरकारों का दायित्व है कि वह ऐसे महान समाज सुधारकों की विरासत को सजीव रखें और उन्हें इतिहास के पन्नों से बाहर लाकर समाज के हर कोने तक पहुंचाएं
(CG News Focus)