रायपुर(CG News Focus): छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर में पारंपरिक खेलों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ‘फुगड़ी‘, कितकित्ता,’ बाटी‘, ‘रेसटिप‘, और ‘गेड़ी‘ जैसे खेल गांवों में बच्चों के जीवन का अभिन्न हिस्सा थे। लेकिन आजकल, इन खेलों की स्थिति चिंताजनक है। छत्तीसगढ़ के प्रमुख समाजसेवी खूबचंद जी ने इन पारंपरिक खेलों के लुप्त होने पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की है और इनकी पुनरावृत्ति के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं।
छत्तीसगढ़ के पारंपरिक खेल
‘फुगड़ी’: यह खेल खासकर लड़कियों के बीच लोकप्रिय था यह खेल छत्तीसगढ़ के लड़कियों के लिए सबसे ज्यादा खेल जाने वाला खेल गांव के लड़कियों को आपस में सामूहिकता और सामाजिक संपर्क को बढ़ावा देता था।
‘कितकित्ता‘ में बच्चे एक यह खेल बच्चों की शारीरिक फिटनेस और प्रतिक्रिया क्षमता को बढ़ावा देता था।
‘बाटी’: ‘बाटी’ में बच्चे यह खेल बच्चों की शारीरिक ताकत और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को बढ़ाता था।
‘रेसटिप’: ‘रेसटिप’ में बच्चों में याह खेल सबसे लोकप्रिय था यह खेल को छत्तीसगढ़ में बच्चे सबसे ज्यादा खेला करते थे।
‘गेड़ी’: ‘गेड़ी’ में बच्चे लकड़ी की टांगों पर खड़े होकर दौड़ते हैं। यह खेल शारीरिक संतुलन और स्थिरता को बढ़ावा देता था और बच्चों के लिए मजेदार चुनौती प्रस्तुत करता था।
खूबचंद जी ने छत्तीसगढ़ के पारंपरिक खेलों के लुप्त होने पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा, “हमारी सांस्कृतिक धरोहर में ये खेल अहम भूमिका निभाते हैं। आजकल के बच्चे डिजिटल मनोरंजन में अधिक व्यस्त हैं, जिससे ये पारंपरिक खेल धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं। हमें इन खेलों को पुनर्जीवित करने और ग्रामीण बच्चों को उनकी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ने की जरूरत है।”
ग्रामीण बच्चों की स्थिति
आजकल, ग्रामीण बच्चों की प्राथमिकताएं तेजी से बदल रही हैं। डिजिटल गेम्स और आधुनिक खेलों की भरमार ने पारंपरिक खेलों की लोकप्रियता को कम कर दिया है। गांवों में, जहां ‘फुगड़ी’, ‘कितकित’, और अन्य पारंपरिक खेल एक समय बेहद लोकप्रिय थे, अब ये खेल धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं।
पुनर्जीवित करने की जरूरत
खूबचंद जी ने पारंपरिक खेलों को पुनर्जीवित करने के लिए कई सुझाव दिए हैं:
- शिक्षा संस्थानों में समावेशन: स्कूलों और शिक्षा संस्थानों में पारंपरिक खेलों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए, ताकि बच्चे इन खेलों के प्रति जागरूक हों।
- सामाजिक संगठनों की भूमिका: स्थानीय सामाजिक संगठनों और सांस्कृतिक समितियों को पारंपरिक खेलों के आयोजन और प्रोत्साहन में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
- मीडिया और प्रचार: मीडिया और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से पारंपरिक खेलों की महत्ता को उजागर किया जाना चाहिए, ताकि युवा पीढ़ी इन खेलों के प्रति जागरूक हो सके।
छत्तीसगढ़ के पारंपरिक खेलों की समाप्ति एक गंभीर मुद्दा है, जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर को खतरे में डाल रहा है। खूबचंद जी की चिंता, इन खेलों को पुनर्जीवित करने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। केवल इसी तरह हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बचा सकते हैं और ग्रामीण बच्चों को उनकी सांस्कृतिक पहचान से जोड़ सकते हैं।
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