रायपुर छत्तीसगढ़ (CG News Focus): छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की तैनाती हमेशा चुनौतीपूर्ण रही है। इन क्षेत्रों में तैनात जवान न सिर्फ माओवादियों का सामना करते हैं, बल्कि मानसिक दबाव, परिवार से दूरी और अत्यधिक तनाव जैसी समस्याओं से भी जूझते हैं। हाल के वर्षों में आत्महत्याओं की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है, जिससे यह सवाल उठता है कि आखिर इसके पीछे की वजह क्या है।
आत्महत्याओं की घटनाएं एक चिंताजनक आंकड़ा
छत्तीसगढ़ में नक्सली क्षेत्रों में तैनात सुरक्षा बलों के जवानों की आत्महत्या की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। 2023 में अब तक 10 से अधिक जवानों ने आत्महत्या की है। ये घटनाएं सुरक्षा और जवानों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गई हैं। हालांकि सरकार और सुरक्षा एजेंसियों ने इस दिशा में कई कदम उठाए हैं, लेकिन इस समस्या का कोई ठोस समाधान अभी तक सामने नहीं आया है।
मुख्य कारण तनाव और मानसिक स्वास्थ्य
विशेषज्ञों का मानना है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनात जवानों पर भारी मानसिक दबाव होता है। दिन-रात की गश्त, लगातार खतरे में रहना और नक्सलियों के हमलों का डर उनकी मानसिक स्थिति को प्रभावित करता है। एक जवान ने गुमनाम रूप से बताया, “हम यहां 24 घंटे सतर्क रहते हैं। हर कदम पर नक्सलियों के हमले का डर बना रहता है। यह लगातार मानसिक तनाव को बढ़ाता है।”
परिवार से दूरी
नक्सली क्षेत्रों में तैनात जवानों को अपने परिवारों से लंबे समय तक दूर रहना पड़ता है। यह दूरी जवानों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। कई जवानों को अपने परिवार की चिंता सताती है, लेकिन वे अपनी जिम्मेदारियों के कारण घर वापस नहीं जा सकते। एक जवान ने बताया, “कई महीने बीत जाते हैं, हम अपने परिवार से नहीं मिल पाते। इससे हमारी मानसिक स्थिति और भी खराब हो जाती है।”
सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सहायता की कमी
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनात जवानों के पास मानसिक तनाव को कम करने के लिए आवश्यक सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सहायता की कमी है। ज्यादातर जवान मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं से अनभिज्ञ होते हैं, और तनाव से निपटने के लिए कोई प्रशिक्षण या सहायता नहीं मिलती। मनोवैज्ञानिक सेवाओं की अनुपलब्धता और सीमित संसाधनों के चलते जवानों को तनाव से निपटने में कठिनाई होती है।
शारीरिक थकान और कठोर वातावरण
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों को कठोर परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। घने जंगल, कठिन मौसम और दुर्गम क्षेत्रों में लगातार गश्त करने से शारीरिक थकान होती है। यह थकान जवानों की मानसिक स्थिति पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “जवानों को न केवल नक्सलियों से लड़ना पड़ता है, बल्कि प्राकृतिक और शारीरिक चुनौतियों से भी। यह स्थिति उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालती है।”
सरकार और सुरक्षा एजेंसियां इस समस्या को सुलझाने के लिए कई उपाय कर रही हैं। मनोवैज्ञानिक सेवाओं और परामर्श देने की प्रक्रिया को मजबूत किया जा रहा है। जवानों के लिए विशेष मनोवैज्ञानिक शिविरों का आयोजन किया जा रहा है, जिससे उन्हें तनाव कम करने और मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद मिल सके। इसके साथ ही, जवानों को नियमित अंतराल पर छुट्टी देने और परिवार से मिलने की सुविधा दी जा रही है।
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जवानों की आत्महत्या की घटनाएं सुरक्षा बलों के मानसिक स्वास्थ्य की गंभीरता को दर्शाती हैं। लगातार खतरे और तनाव में रहने से जवानों की मानसिक स्थिति प्रभावित हो रही है, जिसके कारण आत्महत्या की घटनाएं हो रही हैं। इस दिशा में सरकार और सुरक्षा बलों को और भी अधिक सक्रियता से काम करना होगा ताकि जवानों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं और सहायता मिल सके, जिससे उनकी जानें बचाई जा सकें और वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन प्रभावी तरीके से कर सकें।
(CG News Focus)