छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले की युवती श्यामा की कहानी, जिसने खुद के संघर्ष से गांव में शिक्षा, स्वच्छता और महिला सशक्तिकरण की अलख जगाई।
🌾 कहानी: माटी की बेटी बनी बदलाव की मिसाल
दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़ (Cg news focus):
जहां कभी गांव के बच्चे स्कूल छोड़कर जंगल चले जाते थे, वहां आज स्कूल की घंटी सबसे प्यारी आवाज बन चुकी है। इस बदलाव के पीछे है – एक आम सी दिखने वाली लेकिन असाधारण जज़्बे वाली लड़की – श्यामा कोर्राम।
श्यामा का जन्म दंतेवाड़ा के एक छोटे से आदिवासी गांव मेटापाल में हुआ। घर की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी। मां खेतों में काम करती थीं, पिता लकड़ी बीनकर गुज़ारा चलाते थे। लेकिन श्यामा के सपनों की उड़ान बहुत ऊँची थी।
📚 शिक्षा के लिए जिद, संघर्ष की मिसाल
श्यामा हर रोज़ 5 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाती थी। कभी बारिश, कभी नक्सली डर—but उसने हार नहीं मानी। बारहवीं में उसने पूरे ब्लॉक में टॉप किया, जिससे गांव वालों की नजरों में पढ़ाई की अहमियत बढ़ने लगी।
🚺 महिलाओं के लिए बनी प्रेरणा
श्यामा ने गांव की लड़कियों को सिलाई और कंप्यूटर की ट्रेनिंग देना शुरू किया। उसने “मोर संगवारी महिला समूह” बनाया, जिससे 25 महिलाएं आज खुद का कारोबार चला रही हैं।
🚽 स्वच्छता और स्वास्थ्य अभियान की अगुवाई
एक दिन गांव की महिला ने डिलीवरी के दौरान अस्वच्छता के कारण बच्चा खो दिया। उस घटना ने श्यामा को झकझोर दिया। उसने घर-घर जाकर स्वच्छता की महत्ता बताई, पंचायत से शौचालय बनवाए। आज मेटापाल खुले में शौच मुक्त गांव बन चुका है।
💬 श्यामा कहती है:
“अगर मेरे जैसे गांव की लड़की बदलाव ला सकती है, तो हर बेटी में एक शक्ति छिपी है, बस उसे जगाने की ज़रूरत है।”